AI में पीछे छूटने का रिस्क नहीं ले सकता भारत, जानें कितनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी

आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (AI) को लेकर दुनियाभर में तेजी से काम हो रहा है। विकसित देशों में एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ है। ऐसे में भारत की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। भारत G20 और विकासशील देशों के साथ मिलकर इस तकनीक के रेग्युलेशन में अहम भूमिका निभा सकता है।

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Edited byअनिल कुमार | नवभारत टाइम्स 24 Apr 2024, 6:22 am

हाइलाइट्स

AI रिसर्च में अमीर देश आगे, भारत जैसे विकासशील देश पीछे
भारत AI रिसर्च में पीछे छूटा तो बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी
चीन और पूर्वी एशियाई देशों का प्रदर्शन भी AI रिसर्च में अच्छा
आनंद प्रधान : क्या मशीन/कंप्यूटर आधारित कृत्रिम बुद्धिमत्ता या आर्टिफिशल इंटेलिजेंस (AI) निकट भविष्य में मानवीय बुद्धिमत्ता (HI) के करीब पहुंच जाएगी या उसे पीछे छोड़ देगी? यह सवाल इन दिनों ड्रॉइंग रूम की चर्चाओं से लेकर बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियों के बोर्डरूम और नीति-निर्माताओं के बीच बहस का मुद्दा बना हुआ है।

कहीं आगे तो कहीं पीछे है AI

स्टैनफर्ड विश्वविद्यालय के इंस्टिट्यूट फॉर ह्यूमन सेंटर्ड AI की ताजा रिपोर्ट- AI इंडेक्स, 2024 के मुताबिक, पिछले साल AI ने कई तरह के कामों - जैसे तस्वीरों के वर्गीकरण, दृश्य तार्किकता और अंग्रेजी भाषा की समझ - में मनुष्यों के प्रदर्शन के बेंचमार्क को पीछे छोड़ दिया, लेकिन कई ज्यादा जटिल कामों में वह मानवीय बुद्धिमत्ता से काफी पीछे है।

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भविष्यवाणी मुश्किल

ज्यादातर विशेषज्ञों का मानना है कि AI को मानवीय बुद्धिमत्ता के स्तर तक पहुंचने में अभी दशकों लगेंगे। कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, AI मानवीय बुद्धिमत्ता के स्तर पर कभी नहीं पहुंच पाएगी। इस मामले में भविष्यवाणी मुश्किल है। लेकिन AI की कारोबारी और रणनीतिक संभावनाओं के दोहन को लेकर अमीर देशों के साथ चीन और दुनिया की बड़ी टेक्नॉलजी कंपनियों में होड़ मची हुई है। इस होड़ को देखते हुए लगता है कि AI कुछ वर्षों में कई और मामलों में मानवीय बुद्धिमत्ता को टक्कर देने लगेगी।

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बड़ी कंपनियों में होड़

विकसित देशों की सरकारें और बड़ी टेक कंपनियां AI रिसर्च पर अरबों डॉलर खर्च कर रही हैं। AI इंडेक्स रिपोर्ट के मुताबिक, बीते साल बिगड़ती वैश्विक आर्थिक स्थितियों के कारण AI रिसर्च में निजी निवेश में गिरावट आई। लेकिन जेनरेटिव AI में निजी निवेश 2022 की तुलना में आठ गुणा बढ़कर 2520 करोड़ डॉलर तक पहुंच गया। बड़ी टेक कंपनियां अपने AI मॉडल को ट्रेनिंग देने पर पानी की तरह पैसा बहा रही हैं। उदाहरण के लिए, OpenAI ने ChatGPT-4 की ट्रेनिंग पर बीते साल 7.8 करोड़ डॉलर और गूगल ने जेमिनाय अल्ट्रा की ट्रेनिंग पर 19.1 करोड़ डॉलर खर्च किए।

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विकासशील देश हैं पीछे

नतीजा यह कि एक बार फिर अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और चीन और पूर्वी एशिया (दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, जापान आदि) और उनकी बड़ी टेक कंपनियां AI रिसर्च, पेटेंट और नए मॉडल विकसित करने के मामले में बहुत आगे निकल गई हैं। लेकिन भारत जैसे विकासशील देश इस होड़ में एक बार फिर पिछड़ रहे हैं। AI इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, 2022 तक AI से जुड़े कुल पेटेंटों में चीन और पूर्वी एशिया का हिस्सा 75.2%, उत्तर अमेरिका 21.2%, यूरोपीय संघ का हिस्सा 2.33% था। भारत के हिस्से कुल पेटेंटों का मात्र 0.23% आया है।

अमेरिका और यूरोप का दबदबा

इसका मतलब यह नहीं कि चीन और पूर्वी एशिया के देशों ने AI के मामले में अमेरिका और यूरोपीय संघ का दबदबा तोड़ दिया है। पिछले साल जो महत्वपूर्ण AI मॉडल रिलीज हुए, उनमें 61 अमेरिका से, 21 यूरोपीय संघ के देशों से और 15 चीन से आए। इसी तरह अहम AI मॉडल के विकास में अमीर विकसित देशों की टेक कंपनियां आगे बनी हुई हैं। बीते साल इन कंपनियों ने 51 मशीन लर्निंग मॉडल विकसित किए, जबकि अकादमिक शोध संस्थाओं से 15 मॉडल और दोनों के सहयोग से 21 मॉडल तैयार हुए।

यानी AI रिसर्च और विकास में अमीर देशों और उनकी बड़ी टेक कंपनियों का दबदबा बना हुआ है। इन बड़ी टेक कंपनियों की निगाह AI के तेजी से बढ़ते वैश्विक बाजार पर है।
  • फोर्ब्स पत्रिका के मुताबिक, AI का बाजार 2022 में 13600 करोड़ डॉलर का था, जो कि सालाना 37.3% की सकल वृद्धि दर के साथ वर्ष 2030 तक बढ़कर 1,81,100 करोड़ डॉलर तक पहुंच जाएगा।
  • मैकेंजी की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, अकेले जेनरेटिव AI वैश्विक अर्थव्यवस्था में सालाना 26000 करोड़ डॉलर से लेकर 44000 करोड़ डॉलर जोड़ने लगेगी। रिपोर्ट दावा करती है कि अगले तीन सालों में ऐसी स्थिति आ सकती है कि अगर कोई चीज AI से जुड़ी नहीं है तो वह रद्दी बन जाएगी।
  • बड़ी टेक कंपनियां खासकर गूगल, माइक्रोसॉफ्ट, एपल, एमेजॉन, मेटा और हार्डवेयर कंपनियां- इंटेल और एनविडिया AI के इस विशाल बाजार को कब्जाने के लिए AI शोध और विकास जमकर पैसा बहा रही हैं। इनका कुछ हद तक मुकाबला चीन की कंपनियों- बाइडू, अलीबाबा और टेनसेन्ट ही कर पा रही हैं।

अहम है AI, क्वांटम

भारत और दूसरे बड़े विकासशील देश और उनकी टेक कंपनियां इस दौड़ में पीछे छूट रही हैं। पिछले सप्ताह केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार प्रो. अजय कुमार सूद ने माना कि भारत अगर अपना विज्ञान और अपनी तकनीक विकसित नहीं करता है तो वह अपेक्षित तेज आर्थिक वृद्धि दर हासिल नहीं कर पाएगा। उनके मुताबिक, भारत पहले कई महत्वपूर्ण तकनीकी विकास में पीछे रह गया, लेकिन वह AI, क्वांटम तकनीक और स्वच्छ ऊर्जा तकनीक आदि के मामले में ऐसा नहीं होने दे सकता।

बढ़े सार्वजनिक निवेश

यही नहीं, AI की रणनीतिक भूमिका को देखते हुए भी बड़े विकसित देश इसके शोध में भारी निवेश कर रहे हैं। इसलिए भारत को AI रिसर्च में न सिर्फ सार्वजनिक निवेश बढ़ाने पर जोर देना चाहिए बल्कि AI के रेग्युलेशन के मानक तय करने में भी अगुआई करनी चाहिए। उसे G20 प्लैटफॉर्म और अन्य विकासशील देशों के साथ मिलकर सुरक्षित और विश्वसनीय AI विकसित करने की मुहिम को आगे बढ़ाना चाहिए क्योंकि मुनाफे के लालच में AI के साथ जुड़े जोखिमों पर कम ध्यान दिया जा रहा है या उसे पूरी तरह से बाजार के भरोसे छोड़ दिया गया है।

खतरों की अनदेखी

यह सवाल बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि AI के चमत्कारों से अभिभूत दुनिया और बड़े विकसित देशों की सरकारें और रेग्युलेटर बड़ी टेक कंपनियों के दबाव और AI विकास की होड़ में पीछे छूटने के डर से उसके खतरों को जानते हुए भी अनदेखा कर रहे हैं। AI इंडेक्स रिपोर्ट भी मानती है कि AI के कामकाज के मूल्यांकन के लिए कोई सटीक मानदंड और प्रक्रिया तय नहीं हो पाई है। टेक कंपनियां बड़े-बड़े दावे कर रही हैं, लेकिन उसकी जांच के लिए कोई मानक और स्वतंत्र एजेंसी नहीं है।

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मतदाताओं की निगरानी

लोकतांत्रिक प्रक्रिया खासकर जनमत और चुनावों को प्रभावित करने के लिए AI का इस्तेमाल करके डीप फेक ऑडियो और विडियो तैयार किए जा रहे हैं, जो चिंताजनक है। रिपोर्ट AI में निहित पूर्वाग्रहों और राजनीतिक-वैचारिक झुकावों की चर्चा भी करती है। यही नहीं, मतदाताओं की निगरानी की जा रही है और उनके मानसिक-भावनात्मक व्यवहार को तोड़ने-मरोड़ने की कोशिशें बढ़ रही हैं। AI के तेजी से बढ़ते इस्तेमाल और उसकी बढ़ती ताकत के मद्देनजर इन सवालों को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
लेखक के बारे में
अनिल कुमार
अनिल पिछले एक दशक से अधिक समय से मीडिया इंडस्ट्री में एक्टिव हैं। दैनिक जागरण चंडीगढ़ से 2009 में रिपोर्टिंग से शुरू हुआ सफर, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, अमर उजाला, जनसत्ता.कॉम होते हुए नवभारतटाइम्स.कॉम तक पहुंच चुका है। मूल रूप से बिहार के रहने वाले हैं लेकिन पढ़ाई-लिखाई दिल्ली से हुई है। स्पोर्ट्स और एजुकेशन रिपोर्टिंग के साथ ही सेंट्रल डेस्क पर भी काम करने का अनुभव है। राजनीति, खेल के साथ ही विदेश की खबरों में खास रुचि है।... और पढ़ें